Sunday 29 March 2020

क्या पता जीने के दिन कितने बचे है...क्या पता साँसों के बंधन कितने बचे है...क्या पता इस खूबसूरत

दुनियां मे रहने के लम्हे कितने बचे है...अब कितने बचे है या कितने रह गए है..इस बात से बेखबर

खुल के जीना है..जिस ने दुःख दिया,किस ने दर्द दिया..कौन रहा था जो परेशानी की वजह बना..याद

कुछ करना नहीं..इन दिनों मे वो सब कर लेना है,जिस के लिए सोचते रहे..पन्नों पे लिख कर सब के लिए

कुछ छोड़ जाना है..ज़िंदा रह गए तो इस कहानी को बार-बार पढ़े गे..चले गए तो दुनियां को याद आते

रहे गे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...