बेहद महीन धागों की बनी चुनरी हमारी..सूरज की रौशनी से निकलती वो किरणे,चेहरे हमारे का
दीदार करने लगी..हवा के धीमे धीमे स्वर,यू लगा कोई तो है जो चुनरी हमारी सर से हटाने को है...
सिमटने लगे है खुद ही मे..कदम उठने को तैयार नहीं..कोई तो संभाले हमें,खुद पे अब खुद का बस
ही नहीं..होश खोने लगे है..यह कौन सा रास्ता है जिस पे चलने लगे है..अंगड़ाई भी लेते है तो जिस्म
बेहाल हो जाता है..इन सब का जवाब पूछे किस से कि हर तरफ पहरा किसी अनजान फ़रिश्ते का है..
दीदार करने लगी..हवा के धीमे धीमे स्वर,यू लगा कोई तो है जो चुनरी हमारी सर से हटाने को है...
सिमटने लगे है खुद ही मे..कदम उठने को तैयार नहीं..कोई तो संभाले हमें,खुद पे अब खुद का बस
ही नहीं..होश खोने लगे है..यह कौन सा रास्ता है जिस पे चलने लगे है..अंगड़ाई भी लेते है तो जिस्म
बेहाल हो जाता है..इन सब का जवाब पूछे किस से कि हर तरफ पहरा किसी अनजान फ़रिश्ते का है..