माहौल है हर और मौत का..पर हम इस को जश्न का दौर मान रहे है...यह कौन सा खौफ है,जिस से सब
भाग रहे है...मौत तो सकून दिया करती है..यह तो ज़िंदगी का काम है जो खुशियाँ थोड़ी सी मगर गम
हज़ारों दिया करती है..जब जब देती है ख़ुशी,लोगो को जलन होती है..दर्द मे डूबते हो तो लोगो को सवाल
करने का मौका देती है...जीने लगो बिंदास तो आवारा कह देती है..सजने-संवरने लगो तो आशिक-मिज़ाज़
कह देती है..अब तू ही बता ऐ ज़िंदगी,तू कहाँ से अच्छी है..मौत की खूबसूरती तो देख,यह जब भी किसी
पे आती है तो दुनियाँ को कुछ भी ना कहने का मौका तक नहीं देती है..आदाब देते है मौत तुझे..
भाग रहे है...मौत तो सकून दिया करती है..यह तो ज़िंदगी का काम है जो खुशियाँ थोड़ी सी मगर गम
हज़ारों दिया करती है..जब जब देती है ख़ुशी,लोगो को जलन होती है..दर्द मे डूबते हो तो लोगो को सवाल
करने का मौका देती है...जीने लगो बिंदास तो आवारा कह देती है..सजने-संवरने लगो तो आशिक-मिज़ाज़
कह देती है..अब तू ही बता ऐ ज़िंदगी,तू कहाँ से अच्छी है..मौत की खूबसूरती तो देख,यह जब भी किसी
पे आती है तो दुनियाँ को कुछ भी ना कहने का मौका तक नहीं देती है..आदाब देते है मौत तुझे..