Sunday 15 March 2020

क्यों धीमे-धीमे चल रहा है यह वक़्त आज...क्यों सुबह का यह सूरज ढलने के लिए वक़्त ले रहा है आज...

क्यों नूर की चादर अभी से छाने लगी है आज ..क्यों परिंदो ने घर वापसी का रास्ता जल्द चुन लिया है

आज...महक रहा है अपना ही जिस्म बिना फूलों के आज...यह आंखे देख रही है कोई अनजाना सा

सपना आज...मगर फिर भी यह सूरज,यह वक़्त चल रहा है धीमे-धीमे...अपनी हद से अलग-अलग...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...