क्यों धीमे-धीमे चल रहा है यह वक़्त आज...क्यों सुबह का यह सूरज ढलने के लिए वक़्त ले रहा है आज...
क्यों नूर की चादर अभी से छाने लगी है आज ..क्यों परिंदो ने घर वापसी का रास्ता जल्द चुन लिया है
आज...महक रहा है अपना ही जिस्म बिना फूलों के आज...यह आंखे देख रही है कोई अनजाना सा
सपना आज...मगर फिर भी यह सूरज,यह वक़्त चल रहा है धीमे-धीमे...अपनी हद से अलग-अलग...
क्यों नूर की चादर अभी से छाने लगी है आज ..क्यों परिंदो ने घर वापसी का रास्ता जल्द चुन लिया है
आज...महक रहा है अपना ही जिस्म बिना फूलों के आज...यह आंखे देख रही है कोई अनजाना सा
सपना आज...मगर फिर भी यह सूरज,यह वक़्त चल रहा है धीमे-धीमे...अपनी हद से अलग-अलग...