Friday 27 March 2020

वो लफ्ज़ ही क्या ..हम लिखे और यह ज़माना हमीं की दास्ताँ मान ले...हम तो वो जादूगर है,जो दिलों से दिल निकाल लेते है..यह लफ्ज़ गर सब पे भारी पड़े तो यह शायरा भी क्या करे..कलम जब भी ले हाथ मे तो कुछ सोचती नहीं यह कलम...पाताल की गहराइयों से तो कभी धरती की तह से नीचे..यह शायरा जब भी लफ्ज़ उठाती है तो तहलका मच जाता है..यह दुनियाँ कभी रो देती है तो कभी रूमानी हो जाती है..जब लफ्ज़ो का भार बढ़ जाये तो शायरा की ज़िंदगी को इन शब्दों से जोड़ लेती है. मेरी ज़िंदगी को मेरी ज़िंदगी ही रहने दो,यह गुजारिश सभी से यह शायरा करती है....''सरगोशियां'' का जादू सब के सर चढ़ कर बोले,यही तो यह शायरा चाहती है...''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ''   

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...