Thursday, 30 January 2020

 कभी यू ही गुनगुना देना और बचपन की मस्ती मे खो जाना..कभी एक अल्हड़ बाला की तरह आईने

के आगे खुद को निहारते रहना..अपने रूप को देख खुद ही खुद मे खो जाना..बेवजह मुस्कुरा देना...

कभी प्रेयसी बन मेहबूब को समर्पित हो जाना..कभी दिनों तक नाराज़ भी हो जाना..आईना जो देखे

तो सूरत उन्ही की नज़र आना..क्या कहे हम कैसे है..अब जो है जैसे है,बस खुद मे ही दीवाने मस्ताने

है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...