ज़िंदगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है..तू पास नहीं मेरे,तू साथ भी नहीं मेरे..मगर सदियों से साथ
है मेरे..तू कितना है अपना,रूह के नज़दीक है कितना..खुद मे ग़ुम हो कर भी,तुझी मे ग़ुम है ..रुहे
तो हमेशा आज़ाद हुआ करती है..तुझे मिलने के लिए किसी रोज़ तेरे दर पे यह रूह आए गी..एहसास
तुझे तेरी गलती का बता कर,फिर लौट जाए गी..कोई शर्त नहीं होती प्यार मे,मगर आत्म-सम्मान की
बहुत जरुरत होती है प्यार मे..
है मेरे..तू कितना है अपना,रूह के नज़दीक है कितना..खुद मे ग़ुम हो कर भी,तुझी मे ग़ुम है ..रुहे
तो हमेशा आज़ाद हुआ करती है..तुझे मिलने के लिए किसी रोज़ तेरे दर पे यह रूह आए गी..एहसास
तुझे तेरी गलती का बता कर,फिर लौट जाए गी..कोई शर्त नहीं होती प्यार मे,मगर आत्म-सम्मान की
बहुत जरुरत होती है प्यार मे..