''प्रेम ही तो है जाने दीजिए ना'' यह अल्फ़ाज़ है या प्रेम का तिरस्कार है...प्रेम कोई सामान नहीं,जो हर
मोड़ पर बिकता हो..प्रेम किसी का गुलाम भी नहीं..प्रेम है इतना मंहगा,हीरे-जेवरात और करोड़ो की
कीमत भी खरीद नहीं सकती इस प्रेम को..जो बिक गया प्रेम मे,वो प्रेम भला कहां होगा..प्रेम नाम है
खुद्दारी का,स्वाभिमान का...प्रेम हासिल करना कोई खेल नहीं..जो झुक गया अदब से,जीता वही प्रेम
मे..ज़िद गरूर से कोसो दूर है प्रेम,पर जिस ने प्रेम की महिमा को जाना रूह से,बस वही करीब है इस
प्रेम के..रंग रूप उम्र रुतबा,किसी से कोई वास्ता नहीं इस मासूम से प्रेम को...
मोड़ पर बिकता हो..प्रेम किसी का गुलाम भी नहीं..प्रेम है इतना मंहगा,हीरे-जेवरात और करोड़ो की
कीमत भी खरीद नहीं सकती इस प्रेम को..जो बिक गया प्रेम मे,वो प्रेम भला कहां होगा..प्रेम नाम है
खुद्दारी का,स्वाभिमान का...प्रेम हासिल करना कोई खेल नहीं..जो झुक गया अदब से,जीता वही प्रेम
मे..ज़िद गरूर से कोसो दूर है प्रेम,पर जिस ने प्रेम की महिमा को जाना रूह से,बस वही करीब है इस
प्रेम के..रंग रूप उम्र रुतबा,किसी से कोई वास्ता नहीं इस मासूम से प्रेम को...