काफिर अदा बहकी नज़र..कदम जो चल रहे है अनजान देश की तरफ..देश जो कभी देखा नहीं,
सपनो का हिसाब कभी करते भी नहीं..महके बदन सिर्फ तेरे ख्याल भर से..नज़र झुक जाए तुझे
याद कर के...इबादत तेरी करे तो भी खुदा मान के तुझे..जिस को कभी देखा नहीं,उस की तस्वीर
बनाए कैसे..आड़ी-तिरछी लकीरे खींचते है,तस्वीर और सूरत का सिर्फ अंदाज़ा भर कर लेते है..
सपनो का हिसाब कभी करते भी नहीं..महके बदन सिर्फ तेरे ख्याल भर से..नज़र झुक जाए तुझे
याद कर के...इबादत तेरी करे तो भी खुदा मान के तुझे..जिस को कभी देखा नहीं,उस की तस्वीर
बनाए कैसे..आड़ी-तिरछी लकीरे खींचते है,तस्वीर और सूरत का सिर्फ अंदाज़ा भर कर लेते है..