यह सुबह बहुत निराली हो गई..मीठे मीठे अल्फाज़ो से दिल के रास्ते भिगो गई..पूजा की थाली मे रखा
फूल,खुद ही अपनी मर्ज़ी से हमे अपनी महक से अंदर तक महका गया..शुक्राना करने के लिए जोड़े
हाथ तो फिर इक क़तरा आंसू का,आँखों से आ गया..ख़ुशी जो झलकी तो गालो को इन्ही बूंदो से भिगो
गई...कुदरत तुझे अब क्या कहे..तेरी मर्ज़ी हुई तो हम को कभी गम से रुला दिया..और कभी ख़ुशी
से हमारी आँखों को बेहद भिगो दिया...
फूल,खुद ही अपनी मर्ज़ी से हमे अपनी महक से अंदर तक महका गया..शुक्राना करने के लिए जोड़े
हाथ तो फिर इक क़तरा आंसू का,आँखों से आ गया..ख़ुशी जो झलकी तो गालो को इन्ही बूंदो से भिगो
गई...कुदरत तुझे अब क्या कहे..तेरी मर्ज़ी हुई तो हम को कभी गम से रुला दिया..और कभी ख़ुशी
से हमारी आँखों को बेहद भिगो दिया...