इन शब्दों की पाकीजगी कभी अपनी रूह की आवाज़ से रची..तो कभी आप की आत्मा को हाज़िर-नाज़िर
कर के रची..जब भी रची कोई रचना,प्रेम की शुद्धता को मद्देनज़र रख के ही लिखी..नाराज़ रहे कभी इस
दुनियां के दस्तूरों से या उदास हुए किसी की बेरुखी से कभी..तब भी बाते तेरी रूह से ही करते रहे..जो
हर लम्हा मेरे पास मेरे साथ ही थी..यह शब्द यू ही पाक-साफ़ रहे,चलना है इन्हे बहुत सदियों तल्क़...
कर के रची..जब भी रची कोई रचना,प्रेम की शुद्धता को मद्देनज़र रख के ही लिखी..नाराज़ रहे कभी इस
दुनियां के दस्तूरों से या उदास हुए किसी की बेरुखी से कभी..तब भी बाते तेरी रूह से ही करते रहे..जो
हर लम्हा मेरे पास मेरे साथ ही थी..यह शब्द यू ही पाक-साफ़ रहे,चलना है इन्हे बहुत सदियों तल्क़...