Sunday 26 January 2020

गुजरता रहा कारवां और हम देखते रहे..मगर साथ चले नहीं किसी के,अपनी खुद्दारी के साथ वही रहे..

तमाशा और नज़ारा ही कुछ ऐसा था कि मुस्कुराने पे हम मजबूर हो गए..भागमभागी देखी चंद सिक्कों

के लिए,कुछ भागे हसरतों को पूरा करने के लिए...सकून के नाम पे था कुछ भी नहीं..सिक्के भी कभी

सकून देते है..सिक्कें जब तल्क़ इकट्ठे हुए,सकून और हसरते मर ही गई..मुस्कुराए फिर से हम,सकून

की थाली पास हमारे थी..सिक्कें इकट्ठे ना हुए तो क्या हुआ,खुदा की बरकत पास तब भी थी,आज भी है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...