Saturday, 11 January 2020

दर्द के समंदर से निकले बाहर फिजाओ मे...आज हवाओं मे कितनी खुशबू के रेले है..फूल ही फूल

कितने ही फूल..जो बिछे है हमारी राहो मे,हर कदम पे जैसे सज़दा हमीं का करते हुए..यू लगा एक

फरिश्ता है हम और फूलों की बारिश महका रही है हमे..यह खूबसूरत मंजर तो कभी सोचा ना था..

यह धमाके है खुशियों के या हम उड़ रहे है आसमान मे..धरा पे रहना मकसद है हमारा,मगर इन

फूलों को सिरे से नकारना बहुत मुश्किल है हमारे लिए..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...