Friday 10 January 2020

आप  ने सिखा दिया  इस दुनियाँ मे रहने का सलीका...नहीं तो शायद हम यूं ही बेरहमी के दरवाजे  पे

कलम से दस्तक देते ही रहते और कोई सुनवाई भी ना होती..दर्द की आहट तो कोई कोई ही सुन पाता

है..कलम की लिखावट भी कोई कोई पढ़ पाता है और पढ़ कर समझ पाता है...दिल की शाही कलम

से लिखा था मैंने और उस ने बिना पढ़े ही लफ्ज़ मेरे मिटा दिए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...