आप ने सिखा दिया इस दुनियाँ मे रहने का सलीका...नहीं तो शायद हम यूं ही बेरहमी के दरवाजे पे
कलम से दस्तक देते ही रहते और कोई सुनवाई भी ना होती..दर्द की आहट तो कोई कोई ही सुन पाता
है..कलम की लिखावट भी कोई कोई पढ़ पाता है और पढ़ कर समझ पाता है...दिल की शाही कलम
से लिखा था मैंने और उस ने बिना पढ़े ही लफ्ज़ मेरे मिटा दिए...
कलम से दस्तक देते ही रहते और कोई सुनवाई भी ना होती..दर्द की आहट तो कोई कोई ही सुन पाता
है..कलम की लिखावट भी कोई कोई पढ़ पाता है और पढ़ कर समझ पाता है...दिल की शाही कलम
से लिखा था मैंने और उस ने बिना पढ़े ही लफ्ज़ मेरे मिटा दिए...