दौलत के ढेर पे ना बिठाइए हमे कि ग़ुरबत को बहुत करीब से देखते आए है..क्यों सजाना चाहते है
मंहगी पोशाकों से कि सादगी की पोशाक से खुद को बरसो से सजाते आए है..यह आभूषण,इन का
क्या करे गे हम,खुद को आईने मे सदा से यू ही देखते आए है हम..दौलत के ढेर से फिसल कर गिर
जाए गे हम कि दौलत को कोई मायने नहीं दे सके है हम..बस ईमानदारी से भर दीजिए दामन हमारा
कि यह साथ अनंत काल के लिए सोच कर आए है हम...
मंहगी पोशाकों से कि सादगी की पोशाक से खुद को बरसो से सजाते आए है..यह आभूषण,इन का
क्या करे गे हम,खुद को आईने मे सदा से यू ही देखते आए है हम..दौलत के ढेर से फिसल कर गिर
जाए गे हम कि दौलत को कोई मायने नहीं दे सके है हम..बस ईमानदारी से भर दीजिए दामन हमारा
कि यह साथ अनंत काल के लिए सोच कर आए है हम...