Sunday 12 January 2020

लुभा ना अपनी शक्लो-सूरत की गुस्ताखियों से मुझे..ना जाने कितने ही चेहरे रोज़ गुजरते है मेरी नज़रो

के तले..बात है बहुत छोटी सी मगर काम आए गी तेरे...संवारना है तो संवार जमीर को अपने,शायद

साफ़ जमीर देख हम रहने आ जाए  वहां कुछ अर्से के लिए..सूरत का मोल हमारे लिए कुछ भी तो नहीं..

अदाएं इन की कही से भाती भी नहीं..मोल तो हमारे लिए इंसानी जज्बे का है..मोल हमारे लिए दिल की

सच्चाई का है..अब यह तुझ पे है,शक्ल या जमीर..किस को संवारना है तुझे अब मेरे लिए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...