लुभा ना अपनी शक्लो-सूरत की गुस्ताखियों से मुझे..ना जाने कितने ही चेहरे रोज़ गुजरते है मेरी नज़रो
के तले..बात है बहुत छोटी सी मगर काम आए गी तेरे...संवारना है तो संवार जमीर को अपने,शायद
साफ़ जमीर देख हम रहने आ जाए वहां कुछ अर्से के लिए..सूरत का मोल हमारे लिए कुछ भी तो नहीं..
अदाएं इन की कही से भाती भी नहीं..मोल तो हमारे लिए इंसानी जज्बे का है..मोल हमारे लिए दिल की
सच्चाई का है..अब यह तुझ पे है,शक्ल या जमीर..किस को संवारना है तुझे अब मेरे लिए...
के तले..बात है बहुत छोटी सी मगर काम आए गी तेरे...संवारना है तो संवार जमीर को अपने,शायद
साफ़ जमीर देख हम रहने आ जाए वहां कुछ अर्से के लिए..सूरत का मोल हमारे लिए कुछ भी तो नहीं..
अदाएं इन की कही से भाती भी नहीं..मोल तो हमारे लिए इंसानी जज्बे का है..मोल हमारे लिए दिल की
सच्चाई का है..अब यह तुझ पे है,शक्ल या जमीर..किस को संवारना है तुझे अब मेरे लिए...