जज्बातो की रौ हम को कहां जीने देती है...पल पल रुलाती है ,तब जा कर कही इक छोटी सी ख़ुशी
झोली मे डालती है..जाने-अनजाने यह नन्ही सी ख़ुशी भी,हाथो से हमारे फिसल जाती है..खाली दामन
फिर लिए,इंतज़ार उसी नन्ही सी ख़ुशी का करते है..नन्ही है तो क्या हुआ,साँसों की डोर बंधी तो इसी से
है..बरसे भी तो कितना बरसे,आँखों के कोर थक भी तो जाते है..मगर उस नन्ही सी ख़ुशी के लिए,एक
बार फिर जीने लगते है..
झोली मे डालती है..जाने-अनजाने यह नन्ही सी ख़ुशी भी,हाथो से हमारे फिसल जाती है..खाली दामन
फिर लिए,इंतज़ार उसी नन्ही सी ख़ुशी का करते है..नन्ही है तो क्या हुआ,साँसों की डोर बंधी तो इसी से
है..बरसे भी तो कितना बरसे,आँखों के कोर थक भी तो जाते है..मगर उस नन्ही सी ख़ुशी के लिए,एक
बार फिर जीने लगते है..