बात सवांरने की चली तो याद आया..सवारना अभी बहुत कुछ बाकी है..गुजरे जो तेरी गलियो से,तो
देखा तुझे ..तेरे वज़ूद को सवारना कितना जरुरी है...बिखरे और जगह जगह से टूटे इक पत्थर इंसान
को देखा..जज्बातों का कही नामो-निशा ही नहीं..है गर जज्बात तो उन को बयां करने का सलीका
ही नहीं..किसी को आसमां पे बिठा देना और अचानक धरती पे पटक देना..चोट कितनी लगी,इस से
बेखबर चैन की नींद सोना..सँवारे गे तुझे इतना,जैसे हीरे को तराशा जाता है बस उतना..
देखा तुझे ..तेरे वज़ूद को सवारना कितना जरुरी है...बिखरे और जगह जगह से टूटे इक पत्थर इंसान
को देखा..जज्बातों का कही नामो-निशा ही नहीं..है गर जज्बात तो उन को बयां करने का सलीका
ही नहीं..किसी को आसमां पे बिठा देना और अचानक धरती पे पटक देना..चोट कितनी लगी,इस से
बेखबर चैन की नींद सोना..सँवारे गे तुझे इतना,जैसे हीरे को तराशा जाता है बस उतना..