Friday 3 January 2020

रात जो सरकने पे आई तो घूँघट क्यों सरक गया..बहुत गहरी ख़ामोशी मे,कोई चुपके से कुछ बोल

गया..लाज से शर्म हुए गाल तो मौसम क्यों बदल गया..पायल धीमे से खनकी और राज़ क्यों चूड़ियों

ने खोल दिया..पलकें जो उठ ही नहीं पाई,आँखों ने शरारत से अपनी सब देख लिया..यह सुर्ख फूल

मेरी बिंदिया की तरह,मचलने लगे अपने अरमानो के तले...रुक जा रात ठहर जा रे चाँद,भोर से पहले

क़यामत को आने तो दे..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...