क्यों ना घायल कर दे तुम्हे आज,इन कजरारी आँखों के तीर से..पिघला दे तुम्हे गेसुओं को खोल के..
यह कांच की छनकती चूड़ियाँ,आज टूटने को है तैयार..पायल की यह छन छन तेरी आवाज़ सुनने को
है बेक़रार..तेरी इन गहरी आँखों को ढाप दे अपनी नरम हथेलियों से...तुझे तेरे ही नाम से पुकारे तेरे
ही कान मे..अब यह ना कहना,फुर्सते-काम से बाहर आऊ कैसे..ज़िंदगी बेहाल है तुम को बताऊ कैसे..
मौसम सर्द बहुत है लेकिन,हम जहां बसते है वहां की वादियों मे बरसते है गहरी धूप के गहरे उजाले..
यह कांच की छनकती चूड़ियाँ,आज टूटने को है तैयार..पायल की यह छन छन तेरी आवाज़ सुनने को
है बेक़रार..तेरी इन गहरी आँखों को ढाप दे अपनी नरम हथेलियों से...तुझे तेरे ही नाम से पुकारे तेरे
ही कान मे..अब यह ना कहना,फुर्सते-काम से बाहर आऊ कैसे..ज़िंदगी बेहाल है तुम को बताऊ कैसे..
मौसम सर्द बहुत है लेकिन,हम जहां बसते है वहां की वादियों मे बरसते है गहरी धूप के गहरे उजाले..