चल ही तो रहे थे अकेले अपनी राह पर..बेखौफ अंधेरो मे...लाखों थे आस-पास मगर हम,हम देख
रहे थे उन लाखों को..हर नज़र को परखना,हर नज़र पे नज़र रखना...ख़ामोशी से चलना मगर इक
मुस्कान अधरों पे रखना..किसी को दर्द हो,वजह से हमारी..यह सोच कर हम सहारो से बचते रहे..
खुद्दार है बहुत,इसलिए आत्म-सम्मान पे ही टिके रहे..बहुत कम हम को समझ पाए,जो समझे वो
दूर हम से हो ही नहीं पाए..तक़दीर का लिखा हम मिटाते कैसे कि बेखौफ अँधेरे ही हमे रास आए...
रहे थे उन लाखों को..हर नज़र को परखना,हर नज़र पे नज़र रखना...ख़ामोशी से चलना मगर इक
मुस्कान अधरों पे रखना..किसी को दर्द हो,वजह से हमारी..यह सोच कर हम सहारो से बचते रहे..
खुद्दार है बहुत,इसलिए आत्म-सम्मान पे ही टिके रहे..बहुत कम हम को समझ पाए,जो समझे वो
दूर हम से हो ही नहीं पाए..तक़दीर का लिखा हम मिटाते कैसे कि बेखौफ अँधेरे ही हमे रास आए...