Saturday 11 January 2020

नख से शिख तक सज़े श्रृंगार की सीमा से परे..क्या क्या ना किया पिया को लुभाने के लिए...नाज़नीन

हो या ज़न्नत का कोई अफसाना,या फिर उतरी हो अभी अभी आसमां की ऊचाइयों से...खवाबों मे

खोए इतना कि सांझ घिर आई..यह सांझ क्या लाई है साथ अपने...सोच कर ही लजा गए...''श्रृंगार की

जरुरत तुम को क्या होगी,तेरे मन की सुंदरता ही मुझे क़बूल होगी...सादगी का तेरा रूप,मन का वो

उजला रूप..इस के आगे इस श्रृंगार के क्या मायने है'' सुना तो सुनते ही रहे,लाज को छोड़ पिया के

संग हो लिए..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...