Tuesday 28 January 2020

वो रस्सी थी मजबूत बहुत,और हर मोड़ पे उस के सख्त गांठे थी...खोलने लगे गांठे,क्यों कि रस्सी

की हम को जरुरत थी..मोड़ भी थे इतने भारी कि खोले तो कैसे खोले...हाथ पल भर मे छिल गए 

हमारे..आए जब अपनी आन-बान और शान पे,परवाह हाथो के छिलने की नहीं की हम ने ..हार जाए,

यह हमारी किताब मे लिखा ही नहीं..ज़िंदगी ने ढाढ़स बंधाया और हम ने धीरे धीरे तमाम गांठो को

सुलझा दिया..रस्सी मजबूत रहे,यह वादा हमारा खुद से था..क्या कहे खुद से कि एक जंग हम ने और

जीत ली..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...