Tuesday 14 January 2020

दोस्तों..मुझे बार बार क्यों यह लिखने की जरुरत होती है कि ''सरगोशियां.प्रेम ग्रन्थ'' एक शायरा ,एक लेखिका के शब्दों की शान-अभिमान है..इस का मेरी या किसी भी अन्य की ज़िंदगी से कोई सरोबार नहीं है..अपने कुछ दोस्तों से गुजारिश है कि कोई भी निजी कमेंट ना लिखे जिस से इस शायरा की आत्मा उस की कलम को ठेस पहुंचे..प्रेम एक बहुत शुद्ध शब्द है,बहुत ही पवित्र..इस को गलत रूप से किसी की भी ज़िंदगी से ना जोड़े..मेरा उद्देश्य प्रेम की परिभाषा को गहराई तक लिखना है..ना मेरा उदेशय किसी के लिए लिखना है,न किसी के सम्मान को ठेस पहुंचना है..प्रेम,प्यार,मुहब्बत ...इस पे अगर कोई स्त्री लिखती है,तो गलत क्या है ? इस सरगोशियां को आगे ले जाना है मुझे,आने वाली नस्लों तक पहुँचाना है..सो,मुझे बार बार यह सब लिखने पे मजबूर ना करे..वैसे याद रखे,कि नारी-शक्ति कमजोर नहीं होती..उस की शक्ति बने,सहारा नहीं...शायरा 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...