तरस से नहीं जो पाया स्वाभिमान से पाया..अभिमान नहीं स्वाभिमान,फर्क बहुत है इन दो शब्दों मे..
तरस ले कर जीना तो बेजुबानों और बेसहारों को भी नहीं सिखाया हम ने..तहजीब और असूलों की
राह सब को बताई,चलना है किसे यह मर्ज़ी उन की ..गुरु बन कर साथ नहीं चले किसी के..आज़ाद
परिंदो की तरह उड़ा दिया सब को,कोई कीमत अपने प्यार की किसी से नहीं मांगी हम ने..दुनियां
की रीत बेशक भूल जाना है,उम्मीद तो किसी से भी नहीं लगाई हम ने...
तरस ले कर जीना तो बेजुबानों और बेसहारों को भी नहीं सिखाया हम ने..तहजीब और असूलों की
राह सब को बताई,चलना है किसे यह मर्ज़ी उन की ..गुरु बन कर साथ नहीं चले किसी के..आज़ाद
परिंदो की तरह उड़ा दिया सब को,कोई कीमत अपने प्यार की किसी से नहीं मांगी हम ने..दुनियां
की रीत बेशक भूल जाना है,उम्मीद तो किसी से भी नहीं लगाई हम ने...