सबक हज़ारो सिखाये तक़दीर ने मुझ को...कभी डुबोया दर्द के सैलाब मे तो कभी आसमां की बुलंदियों
तक पंहुचा दिया..थक चुके थे तक़दीर के इस खेल से,इसलिए ना कभी हंस सके ना खुल के रो सके...
शायद वजह रही यह भी कि हम इसी तक़दीर के लिए बहुत सरल बहुत सहज हो गए...इस के हर
फैसले को क़बूल करना जैसे इक खेल हो गया हमारे लिए..पर अब..बस ऐ तक़दीर...सुन जरा..एक
बात हमारी भी....जिंदगी और मौत मे फासला है सिर्फ इक सांस का..जो अब दिया दर्द ऐसा जो जमीर
के आर-पार होगा तो तेरी कसम ऐ तक़दीर,वो दिन हमारी ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा..
तक पंहुचा दिया..थक चुके थे तक़दीर के इस खेल से,इसलिए ना कभी हंस सके ना खुल के रो सके...
शायद वजह रही यह भी कि हम इसी तक़दीर के लिए बहुत सरल बहुत सहज हो गए...इस के हर
फैसले को क़बूल करना जैसे इक खेल हो गया हमारे लिए..पर अब..बस ऐ तक़दीर...सुन जरा..एक
बात हमारी भी....जिंदगी और मौत मे फासला है सिर्फ इक सांस का..जो अब दिया दर्द ऐसा जो जमीर
के आर-पार होगा तो तेरी कसम ऐ तक़दीर,वो दिन हमारी ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा..