Saturday 11 January 2020

सबक हज़ारो सिखाये तक़दीर ने मुझ को...कभी डुबोया दर्द के सैलाब मे तो कभी आसमां की बुलंदियों

तक पंहुचा दिया..थक चुके थे तक़दीर के इस खेल से,इसलिए ना कभी हंस सके ना खुल के रो सके...

शायद वजह रही यह भी कि हम इसी तक़दीर के लिए बहुत सरल बहुत सहज हो गए...इस के हर

फैसले को क़बूल करना जैसे इक खेल हो गया हमारे लिए..पर अब..बस ऐ तक़दीर...सुन जरा..एक

बात हमारी भी....जिंदगी और मौत मे फासला है सिर्फ इक सांस का..जो अब दिया दर्द ऐसा जो जमीर

के आर-पार होगा तो तेरी कसम ऐ तक़दीर,वो दिन हमारी ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...