Thursday 2 January 2020

प्यार की पराकाष्ठा को ना समझ पाए,तो क्या समझे..समर्पण को देह का मोल ही माना,तो देह का मोल

भी कहा समझे..मेरे मन की थाह ना समझे तो मुझे कहा समझ पाए..यह साँसे जो हर लम्हा जीती रही

सिर्फ तेरे लिए,उन का महकना तक ना समझ पाए..हम समझे तुम सब से जुदा हो..बिलकुल मेरे कान्हा

जैसे है,बस वैसे हो..पर तुम इंसानो की फितरत जैसे हो..राधा का रूप-रंग खुद मे समाया,पर इस राधा

को तुम ने फिर भी ना जाना..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...