प्यार की पराकाष्ठा को ना समझ पाए,तो क्या समझे..समर्पण को देह का मोल ही माना,तो देह का मोल
भी कहा समझे..मेरे मन की थाह ना समझे तो मुझे कहा समझ पाए..यह साँसे जो हर लम्हा जीती रही
सिर्फ तेरे लिए,उन का महकना तक ना समझ पाए..हम समझे तुम सब से जुदा हो..बिलकुल मेरे कान्हा
जैसे है,बस वैसे हो..पर तुम इंसानो की फितरत जैसे हो..राधा का रूप-रंग खुद मे समाया,पर इस राधा
को तुम ने फिर भी ना जाना..
भी कहा समझे..मेरे मन की थाह ना समझे तो मुझे कहा समझ पाए..यह साँसे जो हर लम्हा जीती रही
सिर्फ तेरे लिए,उन का महकना तक ना समझ पाए..हम समझे तुम सब से जुदा हो..बिलकुल मेरे कान्हा
जैसे है,बस वैसे हो..पर तुम इंसानो की फितरत जैसे हो..राधा का रूप-रंग खुद मे समाया,पर इस राधा
को तुम ने फिर भी ना जाना..