Monday 13 January 2020

झरने की तरह ही तो बहते आए है..अब तो यह भी याद नहीं,कब से बहते आए है..शायद अनंत काल

से...ना जाने कितने ही कंकर-पत्थरों से टकरा कर,उन को  उन की राहें दिखाते आए है..बहना ही जीवन

है,इस अर्थ को साकार करते भी आए है..फिर क्यों,क्यों...इक पत्थर के ऊपर से जो गुजरे,चोट खा गए..

दर्द से चीखे और बेहाल हो गए..होश तो तब आया,जब खुद पत्थर ने एहसास दिलाया,झरने हो..हक़ ही

नहीं तुम को रोने का..वो दिन सो वो दिन..हम ने नीर भी अपना,अपने ही नीर मे बहा दिया..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...