झरने की तरह ही तो बहते आए है..अब तो यह भी याद नहीं,कब से बहते आए है..शायद अनंत काल
से...ना जाने कितने ही कंकर-पत्थरों से टकरा कर,उन को उन की राहें दिखाते आए है..बहना ही जीवन
है,इस अर्थ को साकार करते भी आए है..फिर क्यों,क्यों...इक पत्थर के ऊपर से जो गुजरे,चोट खा गए..
दर्द से चीखे और बेहाल हो गए..होश तो तब आया,जब खुद पत्थर ने एहसास दिलाया,झरने हो..हक़ ही
नहीं तुम को रोने का..वो दिन सो वो दिन..हम ने नीर भी अपना,अपने ही नीर मे बहा दिया..
से...ना जाने कितने ही कंकर-पत्थरों से टकरा कर,उन को उन की राहें दिखाते आए है..बहना ही जीवन
है,इस अर्थ को साकार करते भी आए है..फिर क्यों,क्यों...इक पत्थर के ऊपर से जो गुजरे,चोट खा गए..
दर्द से चीखे और बेहाल हो गए..होश तो तब आया,जब खुद पत्थर ने एहसास दिलाया,झरने हो..हक़ ही
नहीं तुम को रोने का..वो दिन सो वो दिन..हम ने नीर भी अपना,अपने ही नीर मे बहा दिया..