खुद का दर्द और खुद को भुला कर,जग को मुस्कुराना सिखाना है..यह मकसद लिए जहां मे इंसानो
से मिलने चले आए..कोई था बेरुखी से भरा तो कोई था अपने ही गरूर से भरा..किसी को ज़िंदगी से
मोह ना था..कोई कोई तो हमारी बात सुनने को ही तैयार ना था..सरल मन की सरल मुस्कान से उन
सभी को जीना भी सिखाया और हंसना भी सिखाया..कामयाब तो तब हुए जब एक पत्थर को आज
मुस्कुराते देखा..बहुत शिद्दत से बहुत मेहनत से,हम उस को सिखा रहे थे ज़िंदगी के मायने..आज जब
देखा उस को मुस्कुराते हुए,तो लगा सही मायनो मे हम कामयाब हुए..हमारा मकसद पूरा हुआ,अब
बेशक उस की नज़रे बदले या हमी को भूल जाये...
से मिलने चले आए..कोई था बेरुखी से भरा तो कोई था अपने ही गरूर से भरा..किसी को ज़िंदगी से
मोह ना था..कोई कोई तो हमारी बात सुनने को ही तैयार ना था..सरल मन की सरल मुस्कान से उन
सभी को जीना भी सिखाया और हंसना भी सिखाया..कामयाब तो तब हुए जब एक पत्थर को आज
मुस्कुराते देखा..बहुत शिद्दत से बहुत मेहनत से,हम उस को सिखा रहे थे ज़िंदगी के मायने..आज जब
देखा उस को मुस्कुराते हुए,तो लगा सही मायनो मे हम कामयाब हुए..हमारा मकसद पूरा हुआ,अब
बेशक उस की नज़रे बदले या हमी को भूल जाये...