Wednesday 29 January 2020

किस धर्म के है,मालूम नहीं...किस जात के है,मालूम नहीं..उम्र के किस दौर मे है,यह भी तो मालूम

नहीं..रूह के अपनी पास है..छल की बाज़ियो से बेहद दूर है..तुझे चाहा है,अनंत काल का साथ है..

मन मे कुछ छुपाना भी है,सब तुझे बताना है..खामोश रहना है तो रहना है..गुस्से की सीमा मे रहना है

तो बस रहना है..कांच की तरह टूट भी जाना है..रोना है तो सैलाब को भी मात दे जाना है..राधा बन के

जीना है..मरने पे आए तो तेरे लिए ख़त्म भी हो जाना है..साँसों को खुद ही तोड़ देना है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...