साँझ पूछ रही है आने वाली रात से,कितना सकून देने वाली है तू, आज रात अपने सोने वालो को..
रात हंस दी साँझ पे ..क्या तुम ने पूछा बीते सवेरे से,क्या दिया उस ने ,जागे रहे जो उस के लिए...
पूछती हू तुम से भी साँझ रे,संवारा कितनो को आज अपने रूप से..कुछ भी पूछने से पहले बात
अपनी और सवेरे की कर..मैं तो रात हू,बेशक रंग से गहरी हू...मगर सुन साँझ और सवेरे,सब
थके-हारो को अपनी आगोश मे जब जब भी लेती हू..भूलते है सब दर्द अपना,इंतजार ही इंतजार
होता है मेरा..सकून से सुलाती हू मैं,जो भी आ जाए मेरी आगोश मे...
रात हंस दी साँझ पे ..क्या तुम ने पूछा बीते सवेरे से,क्या दिया उस ने ,जागे रहे जो उस के लिए...
पूछती हू तुम से भी साँझ रे,संवारा कितनो को आज अपने रूप से..कुछ भी पूछने से पहले बात
अपनी और सवेरे की कर..मैं तो रात हू,बेशक रंग से गहरी हू...मगर सुन साँझ और सवेरे,सब
थके-हारो को अपनी आगोश मे जब जब भी लेती हू..भूलते है सब दर्द अपना,इंतजार ही इंतजार
होता है मेरा..सकून से सुलाती हू मैं,जो भी आ जाए मेरी आगोश मे...