Thursday 31 October 2019

प्रेम के महीन नाज़ुक धागों को जब पिरोया बेहद शिद्दत से,बरसो बाद बना वो धागा रूह के पवित्र

बंधन मे..पूजा की थाली मे रखा फूल समझ क़र जो हम ने,कुदरत का आदेश हुआ लिख अब प्रेम

को,पूरी शिद्दत से..बरसो लिखना,सदियों लिखना...अनंत प्रेम की अनंत यह गाथा..शायद कभी कोई

तो होगा,जो समझे गा इस प्रेम की पावन गाथा..कलयुग हो,बेशक हो..प्रेम की गाथा पढ़ते पढ़ते शायद

जग समझे इस की महिमा..प्रेम से ही लौटाए गे इसी जग को,इसी प्रेम की सूंदर प्यारी भाषा..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...