चाँद मुखातिब है मुझ से फिर इक बार..क्यों जलता है मुझ से,ऐसा भी क्या है मुझ मे जो नहीं है
तेरे पास..''प्यार की इंतिहा समझने के लिए हुआ हू मुखातिब तेरे साथ..क्या है यह प्यार''खिलखिला
कर हम जो हँसे,चाँद बौखला गया..सुनो चाँद..जब प्यार ही प्यार सब तरफ नज़र आए, मगर सूरत
कोई ना नज़र आए तो समझ लीजे,प्यार की इंतिहा उफान पे है..यह सुन चाँद,बादलों की ओट मे समा
गया..और हम तो हम है,चाँद की इसी अदा पे मुस्कुरा दिए..
तेरे पास..''प्यार की इंतिहा समझने के लिए हुआ हू मुखातिब तेरे साथ..क्या है यह प्यार''खिलखिला
कर हम जो हँसे,चाँद बौखला गया..सुनो चाँद..जब प्यार ही प्यार सब तरफ नज़र आए, मगर सूरत
कोई ना नज़र आए तो समझ लीजे,प्यार की इंतिहा उफान पे है..यह सुन चाँद,बादलों की ओट मे समा
गया..और हम तो हम है,चाँद की इसी अदा पे मुस्कुरा दिए..