सतयुग के प्रेम के पन्नो को जो खंगाला. तो प्रेम का रूप बहुत अलौकिक पाया..इक दूजे के लिए रूह से
समर्पित पाया..एक को चोट लगी तो घायल दोनों को पाया.रूह के तार जुड़े थे इतने कि इक दूजे की सूरत
मे कोई फर्क तक नज़र नहीं आया..यह कलयुग का प्रेम,जहां प्रेम से जयदा दौलत-रुतबे को भारी पाया..
एक ग़ुम है रुतबा पाने के लिए,नाम कमाने के लिए और रुतबा हासिल करने के लिए..ना वक़्त है अपने
साथी के लिए..साथ तब चाहिए जब,पाना है साथी का साथ..यह प्रेम नहीं,सिर्फ जरुरत है..लिखे गे
कलयुग को भी इन्ही पन्नो पर..क्यों कि लिखने के लिए,सदा नहीं रहे गे इन पन्नो पर..
समर्पित पाया..एक को चोट लगी तो घायल दोनों को पाया.रूह के तार जुड़े थे इतने कि इक दूजे की सूरत
मे कोई फर्क तक नज़र नहीं आया..यह कलयुग का प्रेम,जहां प्रेम से जयदा दौलत-रुतबे को भारी पाया..
एक ग़ुम है रुतबा पाने के लिए,नाम कमाने के लिए और रुतबा हासिल करने के लिए..ना वक़्त है अपने
साथी के लिए..साथ तब चाहिए जब,पाना है साथी का साथ..यह प्रेम नहीं,सिर्फ जरुरत है..लिखे गे
कलयुग को भी इन्ही पन्नो पर..क्यों कि लिखने के लिए,सदा नहीं रहे गे इन पन्नो पर..