आसमां को छूना है तो खुद को सोने की तरह तपाना तो होगा..रंजिशों से परे खुद को खुद ही बनाना
होगा..मंज़िल का तो अभी नाम ही मालूम नहीं..मगर पहुंचना है शिखर तक,यह ख़्वाब तो खुद के
अंदर जगाना होगा..जज़्बा ज़िंदा रखे गे तो ही खुद को उठा पाए गे..जहां भी जाए गे,माँ की यह बात
साथ-साथ ले कर जाए गे..''कामयाबी मिलती उन्ही को है,जो दिल से पाक रहते है..खुद को उठाने के
लिए,दूजो को ना गिराया करते है..रहना सदा धरा पे ही,चाहे आसमां की बुलंदियों को भी पा लो'' माँ,हम
कही भी जाए गे,तेरी सीख़ कभी ना भूल पाए गे..
होगा..मंज़िल का तो अभी नाम ही मालूम नहीं..मगर पहुंचना है शिखर तक,यह ख़्वाब तो खुद के
अंदर जगाना होगा..जज़्बा ज़िंदा रखे गे तो ही खुद को उठा पाए गे..जहां भी जाए गे,माँ की यह बात
साथ-साथ ले कर जाए गे..''कामयाबी मिलती उन्ही को है,जो दिल से पाक रहते है..खुद को उठाने के
लिए,दूजो को ना गिराया करते है..रहना सदा धरा पे ही,चाहे आसमां की बुलंदियों को भी पा लो'' माँ,हम
कही भी जाए गे,तेरी सीख़ कभी ना भूल पाए गे..