Tuesday, 22 October 2019

रफ्ता-रफ्ता कहां महक रहे है..सदियों से तेरे प्यार मे निखरे-निखरे ही तो है..तूने मुझ को अभी भी

कहां जाना,इंद्रधनुष से बने तेरा ही जग महका रहे है..बरसते है बादल जब-जब तूफान से,बिखरता

है इंद्रधनुष तब-तब आसमान मे..ख़ुशी सदा तेरी ही चाही मैंने,बेशक संग साथ नहीं रहना मैंने..क्या

हुआ जो साथ बसे नहीं,क्या हुआ जो इस जन्म मिले नहीं..तेरी खुशियां देख-देख खुश होती हू..प्यार

का अनंत रूप बाँट कर जी लेती हू..क्यों कि राधा हू,इस लिए सब कुछ ना पा कर भी,खुश रहती हू..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...