Wednesday 30 October 2019

प्रेम की इंतिहा जहां भी होती है..समर्पण को साथ ले कर चलती है..समर्पण जो इबादत है,समर्पण जो

इक सजदा है..समर्पण इक काजल है,पर समर्पण कलंक नहीं है..काजल जो प्रेम की नज़र उतारता है..

कलंक है वहां जहां इश्क इक सौदा है..जो समर्पण को मांग अपनी मे भरे...जिस के लिए साथी उस का

कृष्ण रहे..मगर ऐसा होता नहीं..जब साथ-साथ दोनों साथ चले,समर्पण को दोनों इबादत मान चले..

वो प्यार ही पाक है..मुहब्बत जहां बस्ती है,मीठी गुफ्तगू के तले...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...