Wednesday 9 October 2019

अल्हड़पन से भरा वो बचपन का प्यार तेरा,आज भी कभी कभी याद आ जाता है...मेरे घर के आंगन मे

तेरा अपनी साइकिल से चले आना,टिंग टिंग की आवाज़ से सुबह सुबह मुझ को जगाना..मेरी नींद मे

खलल डाल मुस्कुरा कर वापिस घर अपने लौट जाना..घर की छत से मुझ को मासूम इशारे देना,गली

के नुक्कड़ पे मेरे इंतज़ार मे घंटो खड़े रहना..आज भी नहीं भूले तेरा वो अल्हड़पन,वो मासूम सा

बचपन..अब कहाँ मिलती है ऐसी मासूमियत,जो बरसो बाद भी याद दिला दे अपना बचपन...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...