Tuesday, 15 October 2019

अक्सर जब भी मौसम रूमानी होता है,यह मुहब्बतें जन्म लेती है..बेखबर ज़माने से अपने मीत से मिला

करती है...मौसम के बदलते ही यह फिर ग़ुम हो जाया करती है..कौन सा मीत कहाँ का मीत,सब भूल

जाय करती है..हवाओं के रुख से यह मुहब्बतें गायब भी हो जाया करती है..कृष्णा-राधा ,शिव-पार्वती

 की लीला से परे यह इंसानी धर्म भी कहाँ निभाया करती है..मुहब्बत का नाम सिर्फ साथ देना है,दुःख

हो या सुख प्यार तो निभाना है..आखिरी सांस तक उस मुहब्बत को निभाना है,जैसे राधा-कृष्णा को ही
पाना है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...