समर्पण की बेला मे आज..ख़ामोशी की भाषा के साथ..जीती मुहब्बत झुक गया प्यार..प्रेम दे रहा
फिर से इन को, अलौकिक रिश्ते का वही पुराना सुंदर नाम..झुकती आंखे बहकती पलके,उठने को
अब भी नहीं तैयार...भरपूर देख लू तुम को सजना,आस भरी है दिल मे आज..लाज-शर्म से निकले
गर, तभी बने गी पूरी बात..शरारत ना करना इतनी,कि कह ना सके आज फिर दिल की बात...टूट
के चाह तू मुझ को इतना,रिश्ता अलौकिक बने दुबारा से फिर इक बार...
फिर से इन को, अलौकिक रिश्ते का वही पुराना सुंदर नाम..झुकती आंखे बहकती पलके,उठने को
अब भी नहीं तैयार...भरपूर देख लू तुम को सजना,आस भरी है दिल मे आज..लाज-शर्म से निकले
गर, तभी बने गी पूरी बात..शरारत ना करना इतनी,कि कह ना सके आज फिर दिल की बात...टूट
के चाह तू मुझ को इतना,रिश्ता अलौकिक बने दुबारा से फिर इक बार...