आसमाँ की बुलंदियों को गर छूना है तो बेखौफ तो लिखना होगा..प्रेम की भाषा सब को समझाने के
लिए इक प्रेम-ग्रन्थ तो लिखना होगा..हवस से परे,मुहब्बत के लफ्ज़ो को पाक तो रखना होगा..सोच
से परे जो रूहे-मुहब्बत होती है,सदियों से जो चलती आई है,सदियों तक चलती जाए गी..समर्पण-
इबादत जो समझ गया,सज़दा साथी का जो करना सीख़ गया..सही मायने मे मुहब्बत का अर्थ जान
गया..तू मुझ से परे मै तुझ से परे,मगर दिल-रूह तो साथ जुड़े..इस रिश्ते का नाम जो समझा,वही है
बना मुहब्बत के लिए..
लिए इक प्रेम-ग्रन्थ तो लिखना होगा..हवस से परे,मुहब्बत के लफ्ज़ो को पाक तो रखना होगा..सोच
से परे जो रूहे-मुहब्बत होती है,सदियों से जो चलती आई है,सदियों तक चलती जाए गी..समर्पण-
इबादत जो समझ गया,सज़दा साथी का जो करना सीख़ गया..सही मायने मे मुहब्बत का अर्थ जान
गया..तू मुझ से परे मै तुझ से परे,मगर दिल-रूह तो साथ जुड़े..इस रिश्ते का नाम जो समझा,वही है
बना मुहब्बत के लिए..