Thursday, 31 October 2019

बेहद सरल मीठी बोली के मालिक रहे बरसो तक...लोग फायदा उठाते रहे बरसो तक..हर बात पे खुद

को दोषी समझ लेना..हर छोटी बात पे सुबक सुबक रो देना..तन्हाई मे भी खुद ही को दोषी ठहरा देना..

बरसो बाद यह ख्याल आया,क्यों ना थोड़ा सा खुद को खारा कर ले,समंदर के पानी की तरह...जब ठान

लिया तो बस ठान लिया..आज यह आलम है,घोल लिया थोड़ा सा समंदर खुद के मीठे पानी मे..जीने के

लिए जितना काफी है..अब तन्हा होते नहीं,बस शोख अदा से चलते है मीठे-खारे पानी को संग-साथ लिए..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...