बेहद सरल मीठी बोली के मालिक रहे बरसो तक...लोग फायदा उठाते रहे बरसो तक..हर बात पे खुद
को दोषी समझ लेना..हर छोटी बात पे सुबक सुबक रो देना..तन्हाई मे भी खुद ही को दोषी ठहरा देना..
बरसो बाद यह ख्याल आया,क्यों ना थोड़ा सा खुद को खारा कर ले,समंदर के पानी की तरह...जब ठान
लिया तो बस ठान लिया..आज यह आलम है,घोल लिया थोड़ा सा समंदर खुद के मीठे पानी मे..जीने के
लिए जितना काफी है..अब तन्हा होते नहीं,बस शोख अदा से चलते है मीठे-खारे पानी को संग-साथ लिए..
को दोषी समझ लेना..हर छोटी बात पे सुबक सुबक रो देना..तन्हाई मे भी खुद ही को दोषी ठहरा देना..
बरसो बाद यह ख्याल आया,क्यों ना थोड़ा सा खुद को खारा कर ले,समंदर के पानी की तरह...जब ठान
लिया तो बस ठान लिया..आज यह आलम है,घोल लिया थोड़ा सा समंदर खुद के मीठे पानी मे..जीने के
लिए जितना काफी है..अब तन्हा होते नहीं,बस शोख अदा से चलते है मीठे-खारे पानी को संग-साथ लिए..