Tuesday, 29 October 2019

दर्द की बेहद इंतिहा से गुजरे है हम..क्या कहे वो इंतिहा थी या दिल के टूटे टुकड़ो की आवाज़..धीमे

धीमे जले या एक बार ही खुद को जला दे..रौशन था जहां जब जलते दीपक की लो मे, तो हम ने

बेहद ख़ामोशी से दर्द अपना जला दिया..सकूँ पाया इतना कि वज़ूद खुद का बदल डाला..जब बेकदरी

ही पानी है तो खुद को ही क्यों ना सलाम करे..बदलने के लिए तो इक लम्हा ही काफी है..जहां जज्बातों

को बार-बार हर बार रौंदा जाए तो सोचा क्यों ना अब खुद को ही बदल दिया जाए.....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...