दर्द की बेहद इंतिहा से गुजरे है हम..क्या कहे वो इंतिहा थी या दिल के टूटे टुकड़ो की आवाज़..धीमे
धीमे जले या एक बार ही खुद को जला दे..रौशन था जहां जब जलते दीपक की लो मे, तो हम ने
बेहद ख़ामोशी से दर्द अपना जला दिया..सकूँ पाया इतना कि वज़ूद खुद का बदल डाला..जब बेकदरी
ही पानी है तो खुद को ही क्यों ना सलाम करे..बदलने के लिए तो इक लम्हा ही काफी है..जहां जज्बातों
को बार-बार हर बार रौंदा जाए तो सोचा क्यों ना अब खुद को ही बदल दिया जाए.....
धीमे जले या एक बार ही खुद को जला दे..रौशन था जहां जब जलते दीपक की लो मे, तो हम ने
बेहद ख़ामोशी से दर्द अपना जला दिया..सकूँ पाया इतना कि वज़ूद खुद का बदल डाला..जब बेकदरी
ही पानी है तो खुद को ही क्यों ना सलाम करे..बदलने के लिए तो इक लम्हा ही काफी है..जहां जज्बातों
को बार-बार हर बार रौंदा जाए तो सोचा क्यों ना अब खुद को ही बदल दिया जाए.....