कंगना...जो अक्सर हमारी मुहब्बत मे खलल डालते है..चूड़ियों को अपने इर्द-गिर्द ना आने देते है..
यह करधनी अब तेरी जरुरत नहीं लगती मुझ को..खनक इस पायल की साजन को बुरी लगती है,
जब यह खन-खन से उन को दुखी करती है..चाहत के रंग मे डूबे दो दिल,किसी का खलल ना चाहते
है..ज़िंदगी जो गुजर जाए तेरे अशियाने के तले,महक जाए जो जिस्म तेरी मुहब्बत के तले..इस के
सिवा किसी और का खलल ना चाहिए मुझे..
यह करधनी अब तेरी जरुरत नहीं लगती मुझ को..खनक इस पायल की साजन को बुरी लगती है,
जब यह खन-खन से उन को दुखी करती है..चाहत के रंग मे डूबे दो दिल,किसी का खलल ना चाहते
है..ज़िंदगी जो गुजर जाए तेरे अशियाने के तले,महक जाए जो जिस्म तेरी मुहब्बत के तले..इस के
सिवा किसी और का खलल ना चाहिए मुझे..