कलम हमारी लिखती है,बना मुहब्बत को,प्यार को,प्रेम को इतना हसींन..लफ्ज़ो को उड़ा आसमान मे
इतनी दूर,जो दिल से है बेज़ार..जो टूटे है मुहब्बत के बाजार..जो प्यार से है महरूम,जो बुझे है किसी
पुराने दीपक की तरह..मर-मर भी मर ना सके,जीने की ख़्वाहिश भी पूरी कर ना सके..डर-डर के इतना
डरे कि प्यार की डगर भूल गए..कलम हमारी सन्देश देती है,भूल जा कल हुआ था क्या..भूल जा किस
ने तोडा था दिल यह तेरा..प्यार को अब बना इबादत अपनी,जी ले सारी साँसे जो अधूरी थी कभी..
इतनी दूर,जो दिल से है बेज़ार..जो टूटे है मुहब्बत के बाजार..जो प्यार से है महरूम,जो बुझे है किसी
पुराने दीपक की तरह..मर-मर भी मर ना सके,जीने की ख़्वाहिश भी पूरी कर ना सके..डर-डर के इतना
डरे कि प्यार की डगर भूल गए..कलम हमारी सन्देश देती है,भूल जा कल हुआ था क्या..भूल जा किस
ने तोडा था दिल यह तेरा..प्यार को अब बना इबादत अपनी,जी ले सारी साँसे जो अधूरी थी कभी..