सीधे सीधे बेइज़्ज़त किया होता तो अफ़सोस ना होता..दूर जाना था चले जाते,किस ने रोका था...कोई
बंदिश कभी रखी नहीं हम ने,कोई गिला भी नहीं किया हम ने..पर यू चुपके से हमी को अपनी ज़िंदगी
से रुखसत कर देना,इस को बेवफाई ही कहते है..हिम्मत होती गर तो सर उठा कर साथ छोड़ा होता..
पर हम भी गज़ब है..मुहब्बत को आज भी लिखे गे,दुनियां के लिए..इबादत मरते दम तक करे गे,उसी
पाक मुहब्बत के लिए..एतबार तुझ पे ख़तम हुआ है,मुहब्बत पे नहीं..पहली सांस से जो हुई थी शुरू,वो
लिखे गी मुहब्बत को अपनी आखिरी सांस तल्क़..यही है हम,सब से अलग सब से जुदा...
बंदिश कभी रखी नहीं हम ने,कोई गिला भी नहीं किया हम ने..पर यू चुपके से हमी को अपनी ज़िंदगी
से रुखसत कर देना,इस को बेवफाई ही कहते है..हिम्मत होती गर तो सर उठा कर साथ छोड़ा होता..
पर हम भी गज़ब है..मुहब्बत को आज भी लिखे गे,दुनियां के लिए..इबादत मरते दम तक करे गे,उसी
पाक मुहब्बत के लिए..एतबार तुझ पे ख़तम हुआ है,मुहब्बत पे नहीं..पहली सांस से जो हुई थी शुरू,वो
लिखे गी मुहब्बत को अपनी आखिरी सांस तल्क़..यही है हम,सब से अलग सब से जुदा...