गाथा राधा-कृष्णा की पढ़ते पढ़ते हम उस अलौकिक प्यार मे खो गए..उस प्यार की क्या मिसाल दे
हम तो उन की प्रेम कहानी मे बस गए..इतना बसे कि भूल गए,यह दुनियाँ उस लोक से परे है बहुत
परे..यहाँ इतने अलौकिक प्रेम की कदर कहाँ होती है..कोई राधा यहाँ रूठी हो तो कृष्ण को उस को
मनाने की फुर्सत ही कहाँ होती है..दौलत कमानी है,रुतबा बनाना है..गरूर भरा है जिस मे इतना वो
कृष्ण कहाँ होगा..यहाँ राधा मर भी जाए तो भी कृष्ण को उस की कदर का एहसास तक ना होगा..
हम तो उन की प्रेम कहानी मे बस गए..इतना बसे कि भूल गए,यह दुनियाँ उस लोक से परे है बहुत
परे..यहाँ इतने अलौकिक प्रेम की कदर कहाँ होती है..कोई राधा यहाँ रूठी हो तो कृष्ण को उस को
मनाने की फुर्सत ही कहाँ होती है..दौलत कमानी है,रुतबा बनाना है..गरूर भरा है जिस मे इतना वो
कृष्ण कहाँ होगा..यहाँ राधा मर भी जाए तो भी कृष्ण को उस की कदर का एहसास तक ना होगा..