Saturday 19 October 2019

हज़ारो फूल बिखरे हो इस गुलिस्तां मे,सभी को माली कहां मिल पाते है..बेतरबी से बिखरे फूल को

अक्सर सच्चा पारखी ही समझ पाता है..झंझोड़ कर जो रख दे,वो फूल की कीमत से अनजान होता

है..सवारने के लिए फख्त प्यार ही काफी होता है..मुरझा के जो फूल गिर जाए धरा पे,वो फिर दुबारा

ना खिल पाता है..बेशक कितनी हवाएं ज़िंदा करना चाहे उस को,वो फिर से डाल पे कहां खिल पाता

है..रफ्ता रफ्ता छोड़ देता है दुनिया,किसी को कानो-कान खबर भी ना होने देता है..








दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...