Saturday 19 October 2019

आसमाँ गर धरती से मिल पाता...रात-दिन जो साथ साथ रह सकते..शाख से टूट कर ग़ुंचे गर जो

फिर खिल पाते..जो नियति ना कर पाई वो इंसा भला कैसे करते..तक़दीर मे जो जुदाई का गम लिखा

है तो साथ-साथ जीने का खवाब क्यों देख पाते..कृष्ण जब खुद राधा के ना हो पाए,बेशक प्रेम के शुद्ध

धागे अनंत काल तक बंधे पाए...प्यार तक़दीर से कहाँ मिलता है,कुदरत का करिश्मा हो तो पत्थर मे

भी नीर बहा करता है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...