आसमाँ गर धरती से मिल पाता...रात-दिन जो साथ साथ रह सकते..शाख से टूट कर ग़ुंचे गर जो
फिर खिल पाते..जो नियति ना कर पाई वो इंसा भला कैसे करते..तक़दीर मे जो जुदाई का गम लिखा
है तो साथ-साथ जीने का खवाब क्यों देख पाते..कृष्ण जब खुद राधा के ना हो पाए,बेशक प्रेम के शुद्ध
धागे अनंत काल तक बंधे पाए...प्यार तक़दीर से कहाँ मिलता है,कुदरत का करिश्मा हो तो पत्थर मे
भी नीर बहा करता है..
फिर खिल पाते..जो नियति ना कर पाई वो इंसा भला कैसे करते..तक़दीर मे जो जुदाई का गम लिखा
है तो साथ-साथ जीने का खवाब क्यों देख पाते..कृष्ण जब खुद राधा के ना हो पाए,बेशक प्रेम के शुद्ध
धागे अनंत काल तक बंधे पाए...प्यार तक़दीर से कहाँ मिलता है,कुदरत का करिश्मा हो तो पत्थर मे
भी नीर बहा करता है..