हर बात पे रो दे,ऐसे तो अब नहीं है हम..मुस्कुरा दे जो अपने आप पे,बला के खुद्दार है हम..कभी
लिखा मुहब्बत पे,कभी लिखा बगावत पे तो कभी खुद पे चार लफ्ज़ लिख दिए...दुनियाँ समझी
हम को दीवाना,पर हम तो बस आसमाँ मे बेखौफ उड़ दिए..अब गिरे धरा पे या छू ले आसमाँ को,
यह कुदरत की मर्ज़ी होगी...पर लिखे गे तो सिर्फ मुहब्बत को,दुनियाँ को इक पैगाम देने के लिए..
मुहब्बत ही तो है जो जोड़ती है दिलो को,मुहब्बत ही तो है जो पहुँचती है ज़न्नत तक..समझ समझ
की बात है,इरादा गर नेक है तो मुहब्बत दुआ है..इरादा गर पाप है तो मुहब्बत ख़ाक है...
लिखा मुहब्बत पे,कभी लिखा बगावत पे तो कभी खुद पे चार लफ्ज़ लिख दिए...दुनियाँ समझी
हम को दीवाना,पर हम तो बस आसमाँ मे बेखौफ उड़ दिए..अब गिरे धरा पे या छू ले आसमाँ को,
यह कुदरत की मर्ज़ी होगी...पर लिखे गे तो सिर्फ मुहब्बत को,दुनियाँ को इक पैगाम देने के लिए..
मुहब्बत ही तो है जो जोड़ती है दिलो को,मुहब्बत ही तो है जो पहुँचती है ज़न्नत तक..समझ समझ
की बात है,इरादा गर नेक है तो मुहब्बत दुआ है..इरादा गर पाप है तो मुहब्बत ख़ाक है...